मुझमें जो तू है ना, वो बिल्कुल मेरे जैसा है..

कभी नटखट बालक की हँसी जैसा है,

तो कभी हर वक्त कल्पनाओं में रहने वाले कवि जैसा है।

कभी समन्दर की लहरों सा बेबाक है तू..

तो कभी शान्त बहती नदी जैसा है।

मुझमें जो तू है ना, वो बिल्कुल मेरे जैसा है..

कभी मौसमों में सावन है तू,  

तो कभी उदास पतझड़ों जैसा है,

कभी है, रंगीन पुष्प की भांति,

तो कभी पौधों में जड़ों जैसा है।

मुझमें जो तू है ना, वो बिल्कुल मेरे जैसा है..

कभी अल्फाजों की अनिश्चित शब्दावली है तू,

तो कभी ख्यालों की अनकही जैसा है।

मुझमें जो तू हैं ना, वो बिल्कुल मेरे जैसा है।

-कृति

 

 

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